Thursday 30 November 2017

ज़िन्दगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए।

Wednesday 17 February 2016

 जब आप सही तरीके से काम कर रहे हों अव्यवस्था या गलती की गुंजाइश न के बराबर हो फिर भी बराबर नकारात्मक वातावरण बनता चला जाये तो ये समझ लेना चाहिए कि
आपके एक नहीं अनेक दुश्मन हैं ! दुश्मन वो ही नहीं होता जो बाहर से घात करे जो दुश्मन घर के भीतर से घात करता है वो ही सबसे ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि घर के दुश्मन को आपकी कमजोरियां आपकी ताकत सभी कुछ अच्छे से पता होता और वो उसी उसी जगह वार करता है जहां कि आप कमजोर होते हैं !

हमारे देश में भी इस समय अराजकता का माहौल बन रहा है J N U नज़र में है इसलिए हमारा ध्यान सिर्फ उसी पर ही है हर आदमी की नज़र J N U पर ही हैं लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि हम खुद के ही घरों में ग़द्दार पैदा कर रहे हों कहीं ऐसा तो नहीं कि ये गद्दार और भी विश्वविद्यालयों में अपनी जडें जमा चुके हों आज इस विषयों पर नज़र जमाना जरूरी हो गया कॉलेज की राजनीति किस तरफ जा रही है या जा चुकी है अब ये देखना जरूरी भी है ।

पहले फ़िल्म उद्दोग की तरफ से नामचीन नायकों का असंतुष्टि से भरे बयान आना एक के बाद एक लगातार फिर यही असंतोष विश्विद्यालयों तक पहुँच जाना इसके अतिरिक्त बड़े बड़े साहित्यकारों द्वारा सम्मान बापसी का भी एक लंबा दौर चलना और फिर इन सभी तरफ से सन्नाटा पसर जाना और एक और नयी बात को जन्म देना ये सब क्या है सिवाय सोची समझी साजिश के इसे और क्या नाम दिया जा सकता है इन बातों को अब गंभीरता के साथ लेने का समय आ गया है ।

इस देश ने करवट बदली है अब ये उठ कर न सिर्फ चलने के लिए बल्कि दौड़ने के लिए तैयार है और जब आप रेस में सबसे आगे होते हैं उस समय सिर्फ अपनी शक्ति ही नहीं अपना मनोबल भी ऊँचा रखना होता है क्योंकि यदि मनोबल ही ऊँचा नहीं होगा फिर शक्ति से काम नहीं चलेगा यहां भी देश के मनोबल पर चोट की जा रही है आज के समय में हमें बाहरी दुश्मनों से ज्यादा खतरा घर के दुश्मनों से होता है ये वे दुश्मन होते हैं जिनसे आपकी सफलता नहीं पचती और वे बिना सामने आये आपके चारो तरफ जाल बिछाते हैं किसी भी देश की युवाशक्ति को तोड़ देने का मतलब है उस देश की आधी शक्ति को तोड़ देना ................कहीं ये इसी की आहट तो नहीं !!!!



Monday 15 February 2016

धूप !

 
                         धूप !!


धूप अब बहुत देर तक नहीं रूकती है
आँगन की मुंडेर पर ठिठक कर मुड़ जाती है
जैसे कुछ तलाशती हुई आई हो ...दूर से! मगर ...
आँगन!! सूने आँगन में आखिर कब तक ............
कब तक पथरीली दीवारों से चिपक कर
धूप खड़ी रहे सूने आँगन को निहारती हुई
कब तक ..............................................................

अब आँगन में किलकारियाँ नहीं गूंजती
न ही हँसी ,ठिठोली और बातों के वो लंबे दौर !
न ही गीतों की वो लुभावनी आवाज़! ढोलक की थाप !
न वो अल्हड़ गोरियों का ठुमक कर नाचना ................
कि धूप चाह कर भी वो आँगन छोड़ नहीं पाती थी
घिसटते-- घिसटते मुंडेर तक जाकर दीवार से चिपकी रहती थी  ।
मगर कब तक.........................................................................

धूप का मन ही नहीं होता था ,वो !आँगन की रौनक छोड़ने का !
मगर ...अब !! अब धूप रूकती नहीं है .................................
चली जाती है सिर्फ मुंडेर से झांककर ही ......
क्योंकि अब सूने आँगन में धूप का मन उदास होता है !
लंबे पसरे सन्नाटों को अब कोई नहीं तोड़ता ।
न सर्दी में ! न गर्मी में ! न बसंत में ! न ही पतझड़ में !!!
गहरे सन्नाटे .....................................................................
ये गहरे सन्नाटे किसी कुएँ जैसे प्रतीत होते हैं
जिसमें कोई रौशनी नहीं होती ! मगर ..........
जीवन होता है चहल पहल नहीं होती !
और हर छोटी सी आवाज़ को वो सन्नाटा बढ़ा देता है
और आवाज़ उन्हीं दीवारों से टकराती हुई गूंजती रहती है!
फिर थोड़ी देर बाद वही सन्नाटा !अँधेरा और सूनापन !
धूप कुएँ तक नहीं जाती है ...........................................
आँगन की मुंडेर को छूकर चली जाती है .........................
धूप अब बहुत देर तक नहीं रूकती है ...............................

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अंशु प्रधान(मन की बात)